Monday, December 7, 2009

साथियों सलाम

हम सभी साथी लोग अभी नवम्बर के आखिरी में बलरामपुर गए थे। वहाँ पर हम लोगों को गाँव में जाकर लोगों को एक नाटक से शिक्षा, जीवन में क्यों जरुरी है ये दिखाना था। हम लोगों ने एक नाटक से उनको दिखाने की कोशिस की। वहाँ पर हम लोग नाटक के बाद लोगों से बात करते थे, जो की उनके जीवन से जुड़ी हुई होती थी। एक गाँव में एक लोग ने मुझसे पूछा की हमारे गन्ने का दाम नहीं बढ़ रहा है। तो मैंने उनसे कहा की नहीं बढ़ रहा है और जब तक हम लोग एक नहीं होंगे वो बढेगा भी नहीं। हम लोगो को एक होकर अपनी फसल के लिए लड़ना होगा, और उनसे कहना होगा की फसल हमारी है और दाम भी हम तय करेंगे।
लेकिन साथियों ये सवाल और ये जवाब करना इतना आसान नही है, क्यों की जब से देश आजाद हुआ है किसानों की फसल का दाम सरकार तय करती है, वो भी ऐसे लोग तय करते है जो ख़ुद खेती से नहीं जुड़े है। हमें सोचना होगा की आखिर ये कब तक चलेगा, आखिर कब तक खेती हम करेंगे और दाम कोई और तय करेगा।
ये सरकारी लोग पेप्सोडेंट, पेप्सी, कार, इन सब का दाम क्यों नही तय करती है। इसका दाम तो जो बनते है वो ही तय करते है, फ़िर हमारी फसल का दाम तय करने का अधिकार किसी और को क्यों देते है। हमे ये अधिकार अपने हाथ में लेना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम किसान लोग कभी भी आज़ाद और खुश नहीं हो सकते है।

मैं आपसे भी पूछता हू की आखिर मेरा सवाल सही है तो सभी लोग इसका जवाब मिल केर क्यों नहीं खोजते है। आपका क्या जवाब है.................................


दीनदयाल सिंह
जन चेतना कला मंच
9936159914



Thursday, November 19, 2009

इंसान परेशान यहाँ भी है वहाँ भी

इंसान में हैवान यहाँ भी हैं वहाँ भी,
अल्लाह निगेहबान यहाँ भी है वहाँ भी,

खूँख्वार दरिंदों के फ़क़त नाम अलग हैं,
शहरों में बियाबान यहाँ भी है वहाँ भी,

रहमान की कुदरत हो या भगवान की मूरत,
हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहाँ भी,

हिन्दू भी मज़े में है मुसलमान भी मज़े में,
इंसान परेशान यहाँ भी है वहाँ भी |

.............ये शायरी निदा फाजली जी ने भारत और पाकिस्तान पर लिखा है


Thursday, November 5, 2009

सूचना का अधिकार

हमारा देश एक लोकतंत्र है। लोकतंत्र के मायने दिये जाते हैं जनता का शासन। मतलब की एक ऐसा तंत्र जहाँ जनता ही सब कुछ चला रही हो। आज भले ही हमें यह एहसाश नही पर यह पूरा तंत्र हमारे ही वोटों से और हमारे ही पैसे से चल रहा है। हम ही तो वोट देकर सरकार बनते हैं। अगर एक भिखारी भी बाज़ार से कुछ सामान खरीदता है तो सेल टैक्स के रूप में सरकार को टैक्स देता है। हमारे वोटें से चुनकर आए नेताओं और हमारे पैसौं से चल रहे इन सरकारी विभागों की अगर हमारे प्रति जवाबदेही न हो तो क्या वह तंत्र लोकतंत्र कहलायेगा।

ऐसा तंत्र जिसमें की चुने हुए नेता और सरकारी संस्थान जो जनता की भलाई के लिए काम करने के लिए हैं, जनता के प्रति जवाबदेह व जिम्मेदार नहीं हों तो उस तंत्र में किनती गड़बड़, कितना भ्रष्टाचार और घोर अन्याय होगा, वह हम सब समझते हैं।

इसी बात को समझते हुए हमारे देश के कई आम लोगों और संगठनों ने मिलकर सूचना के अधिकार की बात की। सूचना के अधिकार के तहत यह मांग रखी गई की जब यह पूरा तंत्र हमारे लिए ही है तो हमें यह जानने का हक़ है की यह तंत्र कैसे काम कर रहा है। हमें जानने का हक़ है की हमारे चुने हुए नेता और हमारे लिए बनाये गए सरकारी विभाग क्या और कैसे काम कर रहे हैं।

पर यह अधिकार हमें आसानी से नही मिल गया। जैसे हमेशा होता है इस अधिकार को पाने के लिए भी लोगों ने आन्दोलन किए और लडा़ईयां लड़ी पर २००५ में यह अधिकार देश के हर नागरिक को मिल गया। अब इस अधिकार के तहत आम जनता भी इस तंत्र में बैठे लोगों से, जनता से जुड़े मामलों में सीधे सवाल कर सकती है।

लेकिन अधिकार मिल जाने से से तो सब ठीक नहीं हो गया। लाख अधिकार और कानून बना लीजिये, अगर जनता को उसकी ख़बर और उसकी उपयोगिता न पता हो तो कुछ नहीं बदलता है। आज भी हालात सुधरे नहीं हैं। पर इसका मतलब नहीं की यह अधिकार और इस जैसे अन्य अनेक अधिकार बेकार हैं। हालात न बदलने का एक कारण आम जनता का इसका इस्तेमाल न करना है। आज भी कई लोगों को उम्मीद है की "सूचना का अधिकार" का इस्तेमाल हम अपनी अपनी लडाईयाँ लड़ने में कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल कर हम अपनी लडाई के लिए जरुरी सूचना मांग सकते है।

हमारी लड़ाई चाहे हमारे काम या हमारी मजदूरी को लेकर हो, चाहे हमारे गाँव में हो रहे विकास कार्यो को लेकर, हो चाहे हमारे बच्चों के स्कूल को लेकर हो, हम इनसे जुड़ी जानकारी सरकारी विभागों से मांग सकते है।

क्या हम अपनी लड़ाई में इस "सूचना के अधिकार" का इस्तेमाल कर सकते है।

हमारा मंच
कानपुर

Sunday, October 11, 2009

एक शाम शहीदों के नाम २००९

नाटक --- गड्ढा











नृत्य --- सावन महीना मोरा जिया.....








नाटक ---- तमाशा
























नृत्य --- रंग दे बंसंती








गीत ---- जागा रे जागा सारा संसार.....





पुरस्कार वितरण










प्रोग्राम टीम




एक शाम शहीदों के नाम २००९

Monday, October 5, 2009

४ अक्टूबर २००९

सलाम साथियों
४ अक्टूबर को बाल्मीकि जयंती थी, इस अवसर पर अखिल भारतीय बाल्मीकि समाज विकास परिषद की तरफ़ से बाल्मीकि मैदान, आई आई टी कानपुर में प्रोग्राम रखा गया था। इस अवसर पर जन चेतना कला मंच कानपुर ने वहां पर गीत गए, और नाटक जो की ठेकेदारी पर था, उसका मंचन करके लोगों को समझाया की एक मजदूर को क्या चाहिए, और इस ठेकेदारी में उसको क्या मिल रहा है।
हमारे क्षेत्र के सांसद श्री राजाराम पल, आई आई टी कानपुर के निदेशक श्री संजय धांडे, मुख रूप से बुलाये गए थे। नाटक में माध्यम से हम लोग लोगों को ये दिखना चाहते थे की ठेकेदारी के काम में होता क्या है, किस तरह मजदूर से पैसे लेकर उसको काम पर लगाया जाता है, उसके बाद उससे कहा जाता है की सुबह आने का समय तो है पर शाम को जाने का समय नहीं है, और काम के समय किसी से बात नही करनी है, बाहरी लोगों से कोई भी बात नही करनी है। मजदूरों की पगार दूसरे महीने की १५ या २० तारीख को दी जाती है, वो भी बहुत कम पगार दी जाती है, जैसे मजदूर ने २६ दिन काम किया है हो उसके कार्ड पर १५ से लेकर २० दिन की हाज़री लगी होती है और ठेकेदार उनते दिन की ही पगार मजदूरों को देता है, जब एक मजदूर अपनी पगार पूरी मांगता है तो उसको मरते है और गली दे जाती है, उसके बाद जब यह लोगों से पगार और अपने काम को लेकर लोगों से बात करता है तो उसको काम से निकाल दिया जाता है, उसके बाद मजदूर लोगो को संगठित करता है और अपने हकों की मांग करता है, और जब तक मांगे नहीं मानी जाती तब तक की हड़ताल घोषित करता है। अंत में शासन प्रशासन सब को घुटने टेकने पड़ते है और मजदूरों की बात मनानी पड़ती है।
ये दोस्तों सिर्फ़ नाटक नहीं था बल्कि इस समय की हकीकत है। इस में नाटक मुख्य रूप से गौतम, विपिन, मोहित, हरेंदर, शोभित, मनोज, सचिन, भवरपाल, दीनदयाल और दीपू ने भाग लिया था।

कुछ नटखट से सवाल

साथियों सलाम
हम साथी लोग एक दिन शहीद भगत सिंह पुस्तकालय में बैठे थे और किताबे पढ़ रहे थे तो मेरे हाथ में एक किताब चकमक आई जिसको मैं पढ़ रहा था। उसमें कुछ सवाल दिए गए थे जो की मुझे बहुत ही अच्छे लगे मैं यही सवाल वहाँ लिख रहा हूं। आप लोग इसको हल करे और इसके उत्तर मुझे मेल करे।

१. राम के चाचा ने अपनी सम्पति को इस तरह से बांटा की उनकी बेटी को बेटे से तीन गुना अधिक और बेटे को माँ से दुगनी सम्पति मिले। आपको बताना है की राम की चची को कुल कितनी सम्पति मिली जबकि चाचा की कुल सम्पति १००००० थी।

२. राकेश गुल्लक में रोज पैसे डालता था। उसका एक नियम था की वो जिनते पैसे आज डालता था दुसरे दिन उसके दुगने पैसे डालता था जैसे आज १ रूपए डाले तो दुसरे दिन २ रूपए, तीसरे दिन ४ रूपए, चौथे दिन ८ रूपए और इसी तरह ये चलता रहा तो आप बता सकते है की राकेश ने २० दिनों में कितनें रूपए जमा कर लिए होंगे।

Wednesday, September 30, 2009

देश के नेता

देश के नेता बड़े निकम्मा
वोट मंगाते कहते बप्पा अम्मा
वोट हमें देना कहते है,
हमेशा हमें दिखाता रूपया पैसा
जब वो बन जाते नेता मंत्री
उनके पीछे घूमते संत्री
जब मंत्री आते बाहर पड़ते फूलो की माला
लोग सभी बोलते मंत्री जी की आला ।

चंदन तिवारी
शहीद भगत सिंह पुस्तकालय
नानकारी, कानपुर

Monday, September 21, 2009

नहीं लिखता

'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की॥ बुराई पे नही लिखता।

"कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता।

"दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी॥ सफ़ाई पे नही लिखता।

"शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़॥ मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की॥ कमाई पे नही लिखता।

"उसकी ताक़त का नशा॥ "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता।

"समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी॥ गहराई पे नही लिखता।

"पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.'

..................................ये पंकितयां मैंने अपने दोस्त के ब्लॉग पर से ली है ।

Sunday, September 20, 2009

सत्ता

कभी बैठ कर सो़चो भइया यह दंगा क्यों होता है?
बीज ज़हर के बीच हमारे क्योंकर कोई बोता?

रोटी, शिक्षा, रोजगार की जब-जब होती मांग,
दंगे की सूली पैर सत्ता सबको देती टांग ।

हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इस धरती के जाये,
सत्ता के ही भेदभाव से बनते आज पराये ।

चाहे किसी दिशा से देखो यही समझ में आता,
तानाशाही और अमीरी में है सीधा नाता ।


................नीलाभ

Saturday, September 19, 2009

कविता - लालू बनिया

एक था लालू बनिया
खाता हींग बताता धनियां
एक दिन आया बुखार
गया डॉक्टर के पास
डॉक्टर ने लगायी सुई चार
भागा वो सीधे बाज़ार
चंदन
शहीद भगत सिंह पुस्तकालय
नानकारी, कानपुर

कविता - बंदर

एक था बंदर
पैर था जेल के अंदर
खाता था रोज चुकंदर
इसलिए हो गया जेल के अंदर
खाने के लिए पकडी मूली
इसलिए हो गई बंदर के शरीर में खुजली

चंदन
शहीद भगत सिंह पुस्तकालय
नानकारी, कानपुर

Thursday, September 17, 2009

एक शाम शहीदों के नाम १५ अगस्त

साथियों १५ अगस्त को हमारा प्रोग्राम एक शाम शहीदों के नाम होना था, पर शायद आसमान को ये मंजूर था। १५ अगस्त को पूरे समय पानी गिरा लेकिन साथियों ने हिम्मत नहीं हारी और जैसे ही पानी रुका वैसे ही पानी निकलने के लिए कुछ कुछ करने लगे पैर जैसे ही हम लोगो ने पानी नकाल दिया वैसे ही फ़िर पानी suru हुआ और ये सिलसिला करीब शाम ५ बजे तक चलता रहा। और फिर हम लोगों ने प्रोग्राम को १६ अगस्त को करने का प्लान बनाया।


Saturday, August 29, 2009

एक शाम शहीदों के नाम १४ अगस्त

सलाम साथियों
१४ अगस्त को जन चेतना कला मंच ने बच्चों की कुछ प्रयोगितायें करायी जिसमें चित्रकला, सामान्य ज्ञान, कविता पाठ, गीत आदि सब था। करीब १०० बच्चों नें इसमें भाग लिया।

चित्रकला और सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता के कुछ फोटोग्राफ्स।