Friday, August 7, 2009

हमारा समाज

भाषण की है खेतियाँ
कागज पे उगता अनाज
डकैती, मरण, अपहरण
अपने हैं रस्मो रिवाज
कोढ में खाज
हमारा समाज
हमारा समाज
........ये पंकितियाँ मैंने "यह अंदर की बात" नामक पुस्तक से ली है।

साथियों
अगर आप घूमने का शौख रखते है तो किसी जगह जाने से पहले अनुमति जरुर ले लेना नही तो आपका भी यही हाल होगा जो ऊपर फोटो में लोगों के साथ हुआ है।
इनका कसूर सिर्फ़ इतना है की ये भारत के एक प्रसिद्ध संस्थान में बिना अनुमति के घूम रहे थे। इसकी सजा इन्हें ये मिली है। शायद इनको मालूम न हो की संस्थान में बिना अनुमति के नही घूम सकते हो। मुझे लगता है की ये शायद बोर्ड पर लिखी बात पढ़ नहीं पा रहे होंगे जिसके कारण ये संस्थान में घूमने के अनुमति नहीं ले पा रहे हो या इनको अनुमति नहीं दी जा रही है। हमें लगता है की संस्थान और कुत्तो को बैठ कर बात कर लेनी चाहिए और ये रोज की परेशानी की दूर करना चाहिए।

Tuesday, August 4, 2009

कबीर

कहता हूँ कहि जात हूँ,
कहा जो मान हमार ।
जाका गला तुम काटि हो,
सो फिर कटे तुम्हार ॥
.........कबीर
मैं बार बार कहता रहा हूँ, अगर तुम मेरी मनो तो ।
जिसका गला तुम काट रहे हो वो फिर तुम्हारा गला काटेंगे ॥
i' ve been saying,
time after time,
listen, if you care:
if you slit someone's throat
they will slit yours.
हक़ पराइया जातो नहीं
खा कर भार उठावेंगा
फेर ना आकर बदला देसें
लाखी खेत लुटावेंगा ॥
...........................बुल्ले शाह
तुम ये नहीं जानते की पराया हक़ खा कर सारी ज़िन्दगी बोझ उठायोगे ।
इसे तुम कभी भी सुधर नहीं सकते। तुम्हारी दौलत लुट कर रहेगी ॥

if tou take away
others' right
you dont't know, you'd carry a burden
never to be relived of -
and lose all that you've earned.

चुप रहना ही हिंसा की शुरुवात है

पानी

है रे पानी तू भी आज कैद हो गया। अब हमारी प्यास कौन भुझायेगा ये नज़ारा देखने के बाद शायद लोग यही कह रहे होगें।