Tuesday, February 16, 2010

पहिले-पहिल जब वोट मांगे अइले

पहिले-पहिल जब वोट मांगे अइले
तोह्के खेतवा दिअइबो
ओमें फसली उगइबो ।
बजडा के रोटिया देई -देई नुनवा
सोचलीं कि अब त बदली कनुनवा।
अब जमीनदरवा के पनही न सहबो,
अब ना अकारथ बहे पाई खूनवा।

दुसरे चुनउवा में जब उपरैलें त बोले लगले ना
तोहके कुँइयाँ खोनइबो
सब पियसिया मेटैबो
ईहवा से उड़ी- उड़ी ऊंहा जब गैलें
सोंचलीं ईहवा के बतिया भुलैले
हमनी के धीरे से जो मनवा परैलीं
जोर से कनुनिया-कनुनिया चिलैंले ।

तीसरे चुनउवा में चेहरा देखवलें त बोले लगले ना
तोहके महल उठैबो
ओमें बिजुरी लागैबों
चमकल बिजुरी त गोसैयां दुअरिया
हमरी झोपडिया मे घहरे अन्हरिया
सोंचलीं कि अब तक जेके चुनलीं
हमके बनावे सब काठ के पुतरिया ।

अबकी टपकिहें त कहबों कि देख तूं बहुत कइलना
तोहके अब ना थकईबो
अपने हथवा उठईबो
हथवा में हमरे फसलिया भरल बा
हथवा में हमरे लहरिया भरलि बा
एही हथवा से रुस औरी चीन देश में
लूट के किलन पर बिजुरिया गिरल बा ।
जब हम ईंहवो के किलवा ढहैबो त एही हाथें ना
तोहके मटिया मिलैबों
ललका झंडा फहरैबों
त एही हाथें ना
पहिले-पहिल जब वोट मांगे अइले ....


------- गोरख पाण्डेय

समाजवाद


समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई

हाथी से आई

घोड़ा से आई

अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...

नोटवा से आई

बोटवा से आई

बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...

गाँधी से आई

आँधी से आई

टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...

काँगरेस से आई

जनता से आई

झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...

डालर से आई

रूबल से आई

देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...

वादा से आई

लबादा से आई

जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...

लाठी से आई

गोली से आई

लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...

महंगी ले आई

गरीबी ले आई

केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...

छोटका का छोटहन

बड़का का बड़हन

बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...

परसों ले आई

बरसों ले आई

हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...

धीरे-धीरे आई

चुपे-चुपे आई

अँखियन पर परदा लगाई

समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई ।

---------------- गोरख पाण्डेय

(रचनाकाल :1978)

Sunday, February 14, 2010

ज़‍िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम लड़ो

ज़‍िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम लड़ो

ज़‍िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम लड़ो,
तुम लड़ो, तुम लड़ो

तुम लड़ो कि चहचहा उठें हवा के परिन्‍दे
तुम लड़ो कि आसमान चूम ले ज़मीन को
तुम लड़ो कि ज़‍िन्‍दगी महक उठे
और फिर,
प्‍यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते।

ज़‍िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम उठो,
तुम उठो, तुम उठो
तुम उठो, उठो कि उठ पड़ें असंख्‍य हाथ
चल पड़ो कि चल पड़ें असंख्‍य पैर साथ
मुस्‍कुरा उठे क्षितिज पे भोर की किरन
और फिर,
प्‍यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते।

ज़‍िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम बहो,
तुम बहो, तुम बहो
रुधिर प्रवाह की तरह बहो कि लालिमा
मिटा सके कलंक की सितम की कालिमा
बहो कि ख़ुशी कै़द कभी की न जा सके
और फिर,
प्‍यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते।

ज़‍िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम जलो,
तुम जलो, तुम जलो
तुम जलो कि रौशनी के पंख फड़फड़ा उठें
कुचल दिये गये दिलों के तार झनझना उठें
सुषुप्‍त आत्‍मा जगे, गरज उठे
और फिर,
प्‍यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते।

ज़‍िन्‍दगी ने एक दिन कहा कि तुम रचो,
तुम रचो, तुम रचो
तुम रचो हवा, पहाड़, रौशनी नयी
ज़‍िन्‍दगी नयी महान आत्‍मा नयी
सांस-सांस भर उठे अमिट सुगन्‍ध से
और फिर,
प्‍यार के गीत गा उठें सभी
उड़ चलें असीम आसमान चीरते।

- शशि प्रकाश

परिकल्‍पना प्रकाशन से प्रकाशित पुस्‍तक 'कोहेकाफ पर संगीत साधना' से



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