Thursday, November 5, 2009

सूचना का अधिकार

हमारा देश एक लोकतंत्र है। लोकतंत्र के मायने दिये जाते हैं जनता का शासन। मतलब की एक ऐसा तंत्र जहाँ जनता ही सब कुछ चला रही हो। आज भले ही हमें यह एहसाश नही पर यह पूरा तंत्र हमारे ही वोटों से और हमारे ही पैसे से चल रहा है। हम ही तो वोट देकर सरकार बनते हैं। अगर एक भिखारी भी बाज़ार से कुछ सामान खरीदता है तो सेल टैक्स के रूप में सरकार को टैक्स देता है। हमारे वोटें से चुनकर आए नेताओं और हमारे पैसौं से चल रहे इन सरकारी विभागों की अगर हमारे प्रति जवाबदेही न हो तो क्या वह तंत्र लोकतंत्र कहलायेगा।

ऐसा तंत्र जिसमें की चुने हुए नेता और सरकारी संस्थान जो जनता की भलाई के लिए काम करने के लिए हैं, जनता के प्रति जवाबदेह व जिम्मेदार नहीं हों तो उस तंत्र में किनती गड़बड़, कितना भ्रष्टाचार और घोर अन्याय होगा, वह हम सब समझते हैं।

इसी बात को समझते हुए हमारे देश के कई आम लोगों और संगठनों ने मिलकर सूचना के अधिकार की बात की। सूचना के अधिकार के तहत यह मांग रखी गई की जब यह पूरा तंत्र हमारे लिए ही है तो हमें यह जानने का हक़ है की यह तंत्र कैसे काम कर रहा है। हमें जानने का हक़ है की हमारे चुने हुए नेता और हमारे लिए बनाये गए सरकारी विभाग क्या और कैसे काम कर रहे हैं।

पर यह अधिकार हमें आसानी से नही मिल गया। जैसे हमेशा होता है इस अधिकार को पाने के लिए भी लोगों ने आन्दोलन किए और लडा़ईयां लड़ी पर २००५ में यह अधिकार देश के हर नागरिक को मिल गया। अब इस अधिकार के तहत आम जनता भी इस तंत्र में बैठे लोगों से, जनता से जुड़े मामलों में सीधे सवाल कर सकती है।

लेकिन अधिकार मिल जाने से से तो सब ठीक नहीं हो गया। लाख अधिकार और कानून बना लीजिये, अगर जनता को उसकी ख़बर और उसकी उपयोगिता न पता हो तो कुछ नहीं बदलता है। आज भी हालात सुधरे नहीं हैं। पर इसका मतलब नहीं की यह अधिकार और इस जैसे अन्य अनेक अधिकार बेकार हैं। हालात न बदलने का एक कारण आम जनता का इसका इस्तेमाल न करना है। आज भी कई लोगों को उम्मीद है की "सूचना का अधिकार" का इस्तेमाल हम अपनी अपनी लडाईयाँ लड़ने में कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल कर हम अपनी लडाई के लिए जरुरी सूचना मांग सकते है।

हमारी लड़ाई चाहे हमारे काम या हमारी मजदूरी को लेकर हो, चाहे हमारे गाँव में हो रहे विकास कार्यो को लेकर, हो चाहे हमारे बच्चों के स्कूल को लेकर हो, हम इनसे जुड़ी जानकारी सरकारी विभागों से मांग सकते है।

क्या हम अपनी लड़ाई में इस "सूचना के अधिकार" का इस्तेमाल कर सकते है।

हमारा मंच
कानपुर