साथियों जन चेतना कला मंच १५ अगस्त की शाम को एक शाम शहीदों के नाम के साथ मनाता आ रहा है। इसके साथ ही १४ अगस्त को कई तरह की प्रतियोगितायों का आयोजन भी करता है। इस साल जो प्रतियोगिता हो रही है।
१- चित्रकला प्रतियोगिता ।
२- सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता ।
३- निबंध लेखन प्रतियोगिता ।
इस में भाग लेने के लिया बहुत ही निम्न शुल्क रखा गया है।
१- क्लास १ से ५ तक ३ रुपये ।
२- क्लास ६ से ८ तक ५ रुपये ।
१- क्लास ९ से १२ तक १० रुपये ।
प्रतियोगिता १४ अगस्त को २ बजे दोपहर से कर्मचारी मैदान, आई आई टी, कानपुर में आयोजित की जा रही है।
पंजीकरण की आखरी तारीख १३ अगस्त है।
इन प्रतियोगितायों में भाग लेने के लिए संपर्क करे ।
शहीद भगत सिंह पुस्तकालय
नानकारी, आई आई टी कानपुर
फ़ोन नम्बर - 9936159914 , 9198035422, 9793291033
Wednesday, July 22, 2009
आज न कोई नारा होगा सिर्फ़ देश बचाना होगा
साधो देखो रे जग बौराना रे साधो ।
देखो रे जग बौराना ॥
साची कहो तो मारन लागे,
झूठी कहो पतियाना
हिंदू कहत है राम हमारा,
मुस्लमान रहमाना
आपस में दोऊ लडै मरत हैं
मरम न कोई जाना ॥
घर घर मंतर देत फिरत हैं,
माया के अभिमाना
पीपर पत्थर पूजन लागे,
तीरथ गए भुलाना ॥
देखो रे जग बौराना....
माला फेरे टोपी पहिरे,
छाप तिलक अनुमाना
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
ये सब भरम भुलाना ॥
देखो रे जग बौराना............
...............................................................................................................सहमत
६ दिसम्बर १९९२
राम वनवास से लौटकर जब घर में आए
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक्से दीवानगी जो आँगन में देखा होगा
६ दिसम्बर को राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर आए
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक्से दीवानगी जो आँगन में देखा होगा
६ दिसम्बर को राम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहाँ से मेरे घर आए
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
की नज़र आए वहाँ खून के धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरो से उठे
राजधानी की फजा आई नहीं मुझे रास
६ दिसम्बर को मिला मुझे दूसरा वनवास
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरो से उठे
राजधानी की फजा आई नहीं मुझे रास
६ दिसम्बर को मिला मुझे दूसरा वनवास
..................आज़मी
Sunday, July 19, 2009
१९ जुलाई पेम
साथियों
१९ जुलाई को हम जन चेतना कला मंच के साथी पेम गांव में नाटक का मंचन करने गए। गांव पहुँचने के बाद हम लोगों ने पूरे गांव में जाकर लोगो को बुलाया और उनको बताया की हम लोग उनके गांव में नाटक करने आए है। करीब पूरे गांव में हम लोगो को १ घंटा लगा लोगो को बुलाकर लाने में। हम लोग गीत गाकर लोगों को बुला रहे थे।
उसके बाद हम लोगों ने नाटक का मंचन किया। नाटक के बाद हम लोगो ने जनता से बात की उनको नरेगा के बारे में बताया, सूचना का अधिकार २००५ के बारे में बात की, १० प्रतिशत लोगो को ही इन सब के बारे में पता था। नाटक के बाद कुछ बातें इस गांव के बारे में जो पता चली वो बहुत ही ग़लत थी, जैसे गांव का प्रधान लोगों की बात नही सुनता, उस गांव में बम्बा से पानी नहीं मिलता, आगे के गांव के लोग बम्बा को बाँध लेते है और इस गांव तक पानी नहीं आने देते है। जब लोग उनसे बात करने जाते है तो मरने की कहते है।
यहाँ पर नाटक करके नए साथियों को मालूम पड़ा की असली नाटक करने में कितनी ताकत लगती है। इस नाटक में मुख्य रूप से गौतम, मोहित, विपिन, हरेंदर, रमन, प्रमोद,सागर, जितेंदर दीनदयाल ने काम किया।
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