'ख़ुद अपने से ज़्यादा बुरा, ज़माने में कौन है ??
मैं इसलिए औरों की॥ बुराई पे नही लिखता।
"कुछ तो आदत से मज़बूर हैं और कुछ फ़ितरतों की पसंद है ,
ज़ख़्म कितने भी गहरे हों?? मैं उनकी दुहाई पे नही लिखता।
"दुनिया का क्या है हर हाल में, इल्ज़ाम लगाती है,
वरना क्या बात?? कि मैं कुछ अपनी॥ सफ़ाई पे नही लिखता।
"शान-ए-अमीरी पे करू कुछ अर्ज़॥ मगर एक रुकावट है,
मेरे उसूल, मैं गुनाहों की॥ कमाई पे नही लिखता।
"उसकी ताक़त का नशा॥ "मंत्र और कलमे" में बराबर है !!
मेरे दोस्तों!! मैं मज़हब की, लड़ाई पे नही लिखता।
"समंदर को परखने का मेरा, नज़रिया ही अलग है यारों!!
मिज़ाज़ों पे लिखता हूँ मैं उसकी॥ गहराई पे नही लिखता।
"पराए दर्द को , मैं ग़ज़लों में महसूस करता हूँ ,
ये सच है मैं शज़र से फल की, जुदाई पे नही लिखता.'
..................................ये पंकितयां मैंने अपने दोस्त के ब्लॉग पर से ली है ।
Monday, September 21, 2009
Sunday, September 20, 2009
सत्ता
कभी बैठ कर सो़चो भइया यह दंगा क्यों होता है?
बीज ज़हर के बीच हमारे क्योंकर कोई बोता?
रोटी, शिक्षा, रोजगार की जब-जब होती मांग,
दंगे की सूली पैर सत्ता सबको देती टांग ।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इस धरती के जाये,
सत्ता के ही भेदभाव से बनते आज पराये ।
चाहे किसी दिशा से देखो यही समझ में आता,
तानाशाही और अमीरी में है सीधा नाता ।
बीज ज़हर के बीच हमारे क्योंकर कोई बोता?
रोटी, शिक्षा, रोजगार की जब-जब होती मांग,
दंगे की सूली पैर सत्ता सबको देती टांग ।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इस धरती के जाये,
सत्ता के ही भेदभाव से बनते आज पराये ।
चाहे किसी दिशा से देखो यही समझ में आता,
तानाशाही और अमीरी में है सीधा नाता ।
................नीलाभ
Subscribe to:
Posts (Atom)