Saturday, August 1, 2009

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

..........................................हरिवंशराय बच्चन

स्वर्ग से विदाई

भाईयों और बहनों!

अब ये आलिशान इमारत
बन कर तैयार हो गयी है.
अब आप यहाँ से जा सकते हैं.
अपनी भरपूर ताक़त लगाकर
आपने ज़मीन काटी
गहरी नींव डाली,
मिटटी के नीचे दब भी गए.
आपके कई साथी.

मगर आपने हिम्मत से काम लिया
पत्थर और इरादे से,
संकल्प और लोहे से,
बालू, कल्पना और सीमेंट से,
ईंट दर ईंट आपने
अटूट बुलंदी की दीवार खड़ी की.
छत ऐसी कि हाथ बढाकर,
आसमान छुआ जा सके,
बादलों से बात की जा सके.
खिड़कियाँ क्षितिज की थाह लेने वाली,
आँखों जैसी,
दरवाजे, शानदार स्वागत!

अपने घुटनों और बाजुओं और
बरौनियों के बल पर
सैकडों साल टिकी रहने वाली
यह जीती-जागती ईमारत तैयार की
अब आपने हरा भरा लान
फूलों का बागीचा
झरना और ताल भी बना दिया है
कमरे कमरे में गलीचा
और कदम कदम पर
रंग-बिरंगी रौशनी फैला दी है
गर्मी में ठंडक और ठण्ड में
गुनगुनी गर्मी का इंतजाम कर दिया है

संगीत और न्रत्य के
साज़ सामान
सही जगह पर रख दिए हैं
अलगनियां प्यालियाँ
गिलास और बोतलें
सज़ा दी हैं
कम शब्दों में कहें तो
सुख सुविधा और आजादी का
एक सुरक्षित इलाका
एक झिलमिलाता स्वर्ग
रच दिया है

इस मेहनत
और इस लगन के लिए
आपकी बहुत धन्यवाद
अब आप यहाँ से जा सकते हैं.
यह मत पूछिए की कहाँ जाए
जहाँ चाहे वहां जाएँ
फिलहाल उधर अँधेरे में
कटी ज़मीन पर
जो झोपडे डाल रखें हैं
उन्हें भी खाली कर दें
फिर जहाँ चाहे वहां जाएँ.

आप आज़ाद हैं,
हमारी जिम्मेदारी ख़तम हुई
अब एक मिनट के लिए भी
आपका यहाँ ठहरना ठीक नहीं
महामहिम आने वाले हैं
विदेशी मेहमानों के साथ
आने वाली हैं अप्सराएँ
और अफसरान
पश्चिमी धुनों पर शुरू होने वाला है
उन्मादक न्रत्य
जाम झलकने वाला है
भला यहाँ आपकी
क्या ज़रुरत हो सकती है.
और वह आपको देखकर क्या सोचेंगे
गंदे कपडे,
धुल से सने शरीर
ठीक से बोलने और हाथ हिलाने
और सर झुकाने का भी शऊर नहीं
उनकी रुचि और उम्मीद को
कितना धक्का लगेगा
और हमारी कितनी तौहीन होगी
मान लिया कि इमारत की
ये शानदार बुलंदी हासिल करने में
आपने हड्डियाँ लगा दीं
खून पसीना एक कर दिया
लेकिन इसके एवज में
मजदूरी दी जा चुकी है
अब आपको क्या चाहिए?
आप यहाँ ताल नहीं रहे हैं
आपके चेहरे के भाव भी बदल रहे हैं

शायद अपनी इस विशाल
और खूबसूरत रचना से
आपको मोह हो गया है
इसे छोड़कर जाने में दुःख हो रहा है
ऐसा हो सकता है
मगर इसका मतलब यह तो नहीं
कि आप जो कुछ भी अपने हाथ से
बनायेंगे,
वह सब आपका हो जायेगा
इस तरह तो ये सारी दुनिया
आपकी होती
फिर हम मालिक लोग कहाँ जाते
याद रखिये
मालिक मालिक होता है
मजदूर मजदूर
आपको काम करना है
हमे उसका फल भोगना है
आपको स्वर्ग बनाना है
हमे उसमें विहार करना है
अगर ऐसा सोचते हैं
कि आपको अपने काम का
पूरा फल मिलना चाहिए
तो हो सकता है
कि पिछले जन्म के आपके काम
अभावों के नरक में
ले जा रहे हों
विश्वास कीजिये
धर्म के सिवा कोई रास्ता नहीं
अब आप यहाँ से जा सकते हैं

क्या आप यहाँ से जाना ही
नहीं चाहते ?
यहीं रहना चाहते हैं,
इस आलिशान इमारत में
इन गलीचों पर पाव रखना चाहते हैं
ओह! ये तो लालच की हद है
सरासर अन्याय है
कानून और व्यवस्था पर
सीधा हमला है
दूसरों की मिलकियत पर
कब्जा करने
और दुनिया को उलट-पुलट देने का
सबसे बुनियादी अपराध है
हम ऐसा हरगिज नहीं होने देंगे
देखिये ये भाईचारे का मसला नहीं हैं
इंसानीयत का भी नहीं
यह तो लडाई का
जीने या मरने का मसला है
हालाँकि हम खून खराबा नहीं चाहते
हम अमन चैन
सुख-सुविधा पसंद करते हैं
लेकिन आप मजबूर करेंगे
तो हमे कानून का सहारा लेने पडेगा
पुलिस और ज़रुरत पड़ी तो
फौज बुलानी होगी
हम कुचल देंगे
अपने हाथों गडे
इस स्वर्ग में रहने की
आपकी इच्छा भी कुचल देंगे
वर्ना जाइए
टूटते जोडों, उजाड़ आँखों की
आँधियों, अंधेरों और सिसकियों की
मृत्यु गुलामी
और अभावों की अपनी
बेदरोदीवार दुनिया में
चुपचाप
वापिस
चले जाइए!

-गोरख पाण्डेय

सबसे खतरनाक होता है

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुठ्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती

बैठे सोये पकडे जाना - बुरा तो है
डर से चुप रह जाना - बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता .

कपट के शोर में
सही होने पर दब जाना, बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढना - बुरा तो है
किटकिटा कर समय काट लेना - बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता .

सबसे खतरनाक होता है
बेजान शांति से भर जाना
ना होना तड़प का, सब सहन कर लेना
घर से निकलना काम पर
और काम से घर लौट आना,
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनो का मर जाना.

सबसे खतरनाक वो घडी होती है
तुम्हारी कलाई पर चलती हुई भी जो
तुम्हारी नज़र के लिए रुकी होती है .

सबसे खतरनाक वो आँख होती है
सब कुछ देखते हुए भी जो ठंडी बर्फ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चींजों से उठती अंधेपन की भाप पर फिसल जाती है
जो नित दिख रही साधारणता को पीती हुई
एक बेमतलब दोराह की भूल-भुलैया में खो जाती है.

सबसे खतरनाक वो चाँद होता है
जो हर कत्ल काण्ड के बाद
सूने आँगन में निकलता है
पर तुम्हारी आँखों में मिर्चों सा नहीं चुभता.

सबसे खतरनाक वो गीत होता है
तुम्हारे कानों तक पहुचने के लिए
जो विलाप लांघता है
डरे हुए लोगों के दरवाजों सामने
जो नसेड़ी की खांसी खांसता है.

सबसे खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाता है.
और उसकी मरी हुई धुप की कोई फांस
तुम्हारे जिस्म के पूरब में उतर जाए.

मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी लोभ की मुठ्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती

-शहीद अवतार सिंह पाश

(एक लम्बी कविता से)

एक दोहा तुलसीदास का

तुलसी सरनाम, गुलाम है रामको, जाको चाहे सो कहे वोहू.
मांग के खायिबो, महजिद में रहिबो, लेबै को एक देबै को दोउ.

(मेरा नाम तुलसी है, मैं राम का गुलाम हूँ, जिसको जो मन कहे कहता हूँ, मांग के खाता हूँ, मस्जिद में रहता हूँ, न किसी से लेना, न किसी को देना.)

-तुलसीदास, (विनय चरितावली)

तुलसीदास, राम के परमभक्त थे. उन्होंने अपनी रचनाये, संस्कृत में नहीं, साधारण लोगों में प्रचलित अवधी भाषा में की, जिससे वो सब लोगों तक पहुचेइसी कारण उस समय के ब्राह्मण उनकी गिनती अपने बीच नहीं करते थेतुलसीदास ब्राह्मणों द्वारा मंदिर से निकाले जाने के बाद अयोध्या की एक मस्जिद में रहते थे

- पुस्तक "झूठ और सच" से (राम पुनियानी)

Tuesday, July 28, 2009

खुश रहो एहला वतन

खुश रहो एहला वतन ,
हम अपना फ़र्ज़ निभा के चले ,
कभी बुझने न देना उस आग को ,
जो हम सीनों में जला के चले ,
नींद आई जो हम सो गए ,
हम तो सारे वतन को जगा के चले ,
याद आए हमारी तो रोना नही ,
तुम को आज़ादी का रंग लगा के चले ,
इंकलाब जिंदाबाद .........
................................शहीद -ऐ -आज़म की याद में

ले मशालें चल पड़े है


ले मशालें चल पड़े है लोग मेरे गांव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के

पूछती है झोपड़ी और पूछते है खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गांव के

बिन लड़े कुछ भी नहीं मिलता यहाँ ये जानकर
अब लड़ाई लड़ रहे है लोग मेरे गांव के

चीखती है हर रुकावट ठोकरों की मार से
बेड़िया खनका रहे है लोग मेरे गांव के

लाल सूरज अब उगेगा देश के हर गांव में
अब इकटठे हो रहे है लोग मेरे गांव के

देख यारा जो सुबह लगती थी फीकी
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेर गांव के

ले मशालें चल पड़े है लोग मेरे गांव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के

जागा रे, जागा रे

जागा रे, जागा रे जागा सारा संसार
फूटी किरण लाल खुलता है पूरब का द्वार
जागा रे, जागा रे जागा सारा संसार

अंगड़ाई ले कर ये धरती उठी है, धरती उठी है
सदियों की ठुकराई मिट्टी उठी है, मिट्टी उठी है
हो .........टूटे हो टूटे गुलामी के बंधन हज़ार - ३
जागा रे......................

आया ज़माना ये अपना ज़माना, अपना ज़माना
किस्मत का ये रोना गाना पुराना , गाना पुराना
हो ...... बदलेंगे हम अपनी जीवन की नदिया की धार - ३
जागा रे......................

हर भूखा कहता है यूं न मरूँगा, यूं न मरूँगा
में जा के मालिक को नंगा करूँगा, नंगा करूँगा
हो ....... ढाह दूंगा दुखियारी लाशों पे उठती दीवार
जागा रे, जागा रे जागा सारा संसार