तुलसी सरनाम, गुलाम है रामको, जाको चाहे सो कहे वोहू.
मांग के खायिबो, महजिद में रहिबो, लेबै को एक न देबै को दोउ.
मांग के खायिबो, महजिद में रहिबो, लेबै को एक न देबै को दोउ.
(मेरा नाम तुलसी है, मैं राम का गुलाम हूँ, जिसको जो मन कहे कहता हूँ, मांग के खाता हूँ, मस्जिद में रहता हूँ, न किसी से लेना, न किसी को देना.)
-तुलसीदास, (विनय चरितावली)
तुलसीदास, राम के परमभक्त थे. उन्होंने अपनी रचनाये, संस्कृत में नहीं, साधारण लोगों में प्रचलित अवधी भाषा में की, जिससे वो सब लोगों तक पहुचे। इसी कारण उस समय के ब्राह्मण उनकी गिनती अपने बीच नहीं करते थे। तुलसीदास ब्राह्मणों द्वारा मंदिर से निकाले जाने के बाद अयोध्या की एक मस्जिद में रहते थे।
- पुस्तक "झूठ और सच" से (राम पुनियानी)
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