Monday, April 26, 2010

सलाम साथियों

आई आई टी कानपुर, जिसका नाम सुनते ही लोग क्या क्या सोचने लगते है, की वह कितनी अच्छी और खुबसूरत जगह है, और देश को कितना कुछ दे रही है, आई आई टी कानपुर। पर कभी भी वहाँ पर काम करने वाले डेली वोर्केर या ठेका मजदूर या कामगारों की के बारे में कोई सोचना भी नहीं चाहता। सोचने वाली बात है की जो आई आई टी देश के विकास के लिए कितना कुछ कर रही है (आई आई टी के अनुसार / अखबार के अनुसार) वो अपने वहाँ काम करने वाले इन कामगारों के विकास के लिए करने की बात तो दूर, बात भी करना नहीं चाहती।

आई आई टी कानपुर के विसिटर होस्टल में ३१ मार्च २०१० को ठेका बदलने पर वहाँ पर काम करने वाले १६ लोगो को काम पर से हटा दिया गया और उनकी जगह नये लोगों को रख लिया गया। सोचने वाली बात यह है की जब लोग रखने ही थे तो लोगो को काम पर से हटाया ही क्यों गया। इसका एक सीधा सी कारन जो निकल कर आया वो ये था की वहाँ पर पर काम कर रहे कुछ अधिकारियों के लोगों (जो या तो उनके रिश्तेदार थे, या उनकी जय जयकार करने वाले थे) को काम पर रखना था। अब ये सोचने वाली बात है की जो आदमी पिछले कई सालो से वहाँ पर काम कर रहा था उसको तुम ने कितनी आसानी से कह दिया की अब आपको आने की जरुरत नहीं है, और आपका काम ख़त्म किया जाता है। किसी ने ये नहीं सोचा की वो कल से क्या नया करने लगेगा या कल से उसके घर में कैसे काम होगा, कल को उसका बच्चा उससे पूछे की "पापा आप काम पर क्यों नहीं जा रहे है" तो वो क्या जवाब देंगे, किसी ने सोचने की जरुरत भी नहीं सोची।

लेकिन जो साथी काम पर से हटाये गए थे उन्होंने ने इस बात को सोचा और कहा की हम हार नहीं मानेगे, और सभी साथियों ने मिल कर इस पर बात की और ये निर्णय लिया की कुछ भी हो हम काम वापस लेकर रहेंगे। इन साथियों ने "हमारा मंच" के साथ बैठक की और आगे के लिए कुछ निर्णय लिया । आई आई टी प्रशासन पर दबाव बना और प्रशासन ने अपना यही पुराना तरीका अपनाया की १६ में से १० लोगों को वापस काम पर रख लिया गया, और सोचा होगा की अब हम किसी को नहीं रखेगे और इनकी लड़ाई भी कमज़ोर हो जाएगी। पर ये बड़ी अच्छी बात है की जिन साथियों को वापस काम मिल गया था उन्होंने बाकी साथियों कहा साथ नहीं छोड़ा और जो प्रशासन की सोच थी उसको सफल नहीं होने दिया और सारे साथियों ने मिलकर बात की और कुछ संगठनों से बात कर सहयोग माँगा, जिसमे कर्मचारी संगठन, आई आई टी कानपुर ने इनका पूरा साथ दिया और इनकी लड़ाई में पूरा योगदान दिया। प्रशासन के उपर काफी दबाव बनाने के बाद प्रशासन को मज़बूरी में इनको काम पर वापस रखना पड़ा।

ये पहिली बार नहीं हुआ है की आई आई की कानपुर के अंदर लोगों को काम पर से हटाया गया हो, लेकिन साथियों अब ये सोचना पड़ेगा की कब तक ये लोगों को काम पर से हटायेंगे और फिर कुछ प्रशासन पर दबाव बनाकर उनको काम वापस मिलेगा। अब सभी साथियों को एक होकर कुछ ठोस कदम लेना होगा, आखिर कब तक आई आई टी प्रशासन अपनी मर्जी से काम करेगा, आखिर ये सरकारी संस्थान है इसके कुछ कायदे - कानून है, इन कायदे कानून को ये अपनी मर्जी से तो मानने वाले नहीं है, तो हम सभी साथियों लोगों को एक होना होगा और एक संगठित ताकत बनानी होगी, जिसका डर आई आई टी कानपुर प्रशासन की नीद उड़ा दे, और हम लोगों अपने घर में चैन की नीद सोये।

मजदूर है , मजबूर नहीं....
हम अपना हक लेकर रहेंगे...

दीन दयाल सिंह
हमारा मंच

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